क्या है साइबर गुलामी, जिसका शिकार हो रहे भारतीय नौजवानों को विदेशों में शॉक ट्रीटमेंट से किया जा रहा प्रताड़ित

नई दिल्ली: देश में इन दिनों साइबर ठगी के मामलों में काफी इजाफा हुआ है। उनमें से कुछ ठगी विदेश में बैठे भारतीय ही करते हैं लेकिन मजबूरी में... दरअसल नौकरी के तलाश में कंबोडिया और लाओस जाने वाले भारतीयों को जबरन बंधक बनाकर ये काम करवाया जा रहा है।

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नई दिल्ली: देश में इन दिनों साइबर ठगी के मामलों में काफी इजाफा हुआ है। उनमें से कुछ ठगी विदेश में बैठे भारतीय ही करते हैं लेकिन मजबूरी में... दरअसल नौकरी के तलाश में कंबोडिया और लाओस जाने वाले भारतीयों को जबरन बंधक बनाकर ये काम करवाया जा रहा है। इतना ही नहीं उनका शारीरिक शोषण भी होता है और उन्हें शॉक ट्रीटमेंट भी दिया जा सकता है। अब आप समझ सकते हैं कि उन्हें अपने ही भारतीय भाइयों और बहनों को ठगने के लिए किस हद तक टॉर्चर किया जाता है। इन मामलों पर रोक लगाने के लिए गृह मंत्रालय, विदेश मंत्रालय, केंद्रीय खुफिया एजेंसियों और एनआईए के साथ मिलकर काम कर रही हैं। हाल ही में इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के कार्यालय में एक बैठक आयोजित की गई, जहां सोशल मीडिया मध्यस्थों से इन गतिविधियों पर सक्रिय रूप से अंकुश लगाने का आग्रह किया गया।

भारतीय कैसे फंसते जा रहे हैं विदेशियों के जाल में

गृह मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि पूरे सिस्टम को चलाने वाले अपराधी सोशल मीडिया साइट्स पर विज्ञापन प्रकाशित करते हैं और इन विज्ञापनों पर बहुत अधिक खर्च करते हैं। इसके साथ ही ये भारत के कुछ धोखाधड़ी करने वाले एजेंटों के संपर्क में भी होते हैं जो युवाओं को विदेश में नौकरी का लालच देते हैं। धोखाधड़ी करने वाली कंपनियां भारतीय एजेंटों से युवाओं को लाओस, कंबोडिया, म्यांमार और थाईलैंड जैसे देशों में नौकरी का लालच देने को बोलती हैं। जिसके बाद भारतीय नौजवानों का इंटरव्यू करके उम्मीदवारों को शॉर्टलिस्ट किया जाता है और फिर उम्मीदवारों से पैसे लेकर उनकी टिकट बुक की जाती है।

सोशल मीडिया पर छाए रहते हैं ये फर्जी नौकरी के विज्ञापन

असली धोखाधड़ी का खेल विदेश पहुंचने पर होता है। जब उम्मीदवार नौकरी करने के लिए कंपनी की जगह पर जाता है तो सबसे पहले उन्हें एक जगह पर ले जाया जाता है। जहां पर उनका पासपोर्ट जमा करवा दिया जाता है। उसके बाद वो धोखेबाज कंपनियां उन्हें अलग- अलग जगहों पर भेज देती हैं। जहां पर उन्हें भारतीयों को ठगने के लिए कहा जाता है। उन्हें भारतीयों के नंबर की लिस्ट के साथ ही एक सिस्टम भी दिया जाता है। यहां पर अगर कोई उनकी बात मानने से मना करता है तो उन्हें शॉक ट्रीटमेंट दिया जाता इसके साथ ही उन्हें घर जाने के लिए पासपोर्ट भी नहीं दिए जाते हैं। अब उनके पास कोई विकल्प ही नहीं होता है और वो न चाहते हुए भी भारतीयों को ठगने का काम करते हैं। बता दें इस तरह से बंधक बनाकर साइबर क्राइम करवाने को साइबर गुलामी कहा जाता है।

ऐसे भी विज्ञापन छाए रहते हैं


NIA के जांच में क्या मिला

साइबर ठगी और मानव तस्करी के एक मामले की जांच करते हुए NIA की टीम ने संदिग्धों की तलाश में हरियाणा, दिल्ली और राजस्थान में कई स्थानों पर छापेमारी की। इसके साथ ही धोखेबाज ट्रैवल एजेंटों पर कार्रवाई करते हुए एनआईए की टीमों ने पांच जगहों की तलाशी ली। ये जगहें मुख्य आरोपी बलवंत उर्फ बॉबी कटारिया के सहयोगियों और कार्यालयों से जुड़े थे। तलाशी के दौरान पता चला कि संदिग्ध लोगों की तस्करी लाओस में एक साइबर धोखाधड़ी कंपनी के लिए करता था। इस दौरान ये भी पता चला कि मानव तस्करी सिंडिकेट गुरुग्राम और भारत के भीतर और बाहर के अन्य क्षेत्रों से संचालित होता था। जो भारत से लोगों को लाओस में गोल्डन ट्रायंगल एसईजेड में भर्ती करता था।

कैसे करते हैं पैसों को ट्रांसफर

I4C के अनुसार ये फर्जी कॉल सेंटर एक मल्टीलेयर बैंक ट्रांसफर सिस्टम का उपयोग करते हैं। जो क्रिप्टो करेंसी में बदलने या विदेश में वापस लेने से पहले नौ बैंकों के माध्यम से पैसे ट्रांसफर करते हैं। साल 2024 में लाओस, कंबोडिया और म्यांमार जैसे देशों में साइबर गुलामी कर रहे लोगों ने चार महीने में 7,061 करोड़ रुपये से अधिक की हेराफेरी की है।

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मनोज शर्मा

मनोज शर्मा (जन्म 1968) स्वर्णिम भारत के संस्थापक-प्रकाशक , प्रधान संपादक और मेन्टम सॉफ्टवेयर प्राइवेट लिमिटेड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं।

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